Tuesday, April 12, 2016

आँखों के दरीचों पे दिन की रौशनी को काले परदे - goggles

आँखों के दरीचों पे दिन की रौशनी को काले परदे
रात बे-इत्मिनान चांदनी के मस को खुल जाते हैं
जलाता नहीं चाँद जिस्म को दिन - रौशनी की तरह
जाने क्यूँ फिर भी हम तुम बेआब हुए जाते हैं।

~ सूफी बेनाम

आँखों के दरीचों पे दिन की रौशनी को काले परदे - goggles/ shades/ dark glasses

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