Friday, April 1, 2016

यार उससे बात करले यारी पुरानी है बहुत

जल चुकी है हकीक़त आग पानी है बहुत
बस रहा है ख्वाब में दिलबर कहानी है बहुत

दौड़ आना तुम कभी गर याद हम आने लगे
दूरियां-नज़दीकियां यूं जाफरानी है बहुत

दिखते बाज़ार में हो रोज़ मर्रा शाम को
रूबरू तुमसे नहीं, चाहत रवानी है बहुत

कुछ करीबी दोस्त मेरे रोक कर कहने लगे
यार उससे बात करले यारी पुरानी है बहुत

चाहे जितना भी बुझाले आस बढ़ती जा रही
मयकदा दुनिया बनी हमको चढ़ानी है बहुत

हम तरीका ढूंढ लेंगे तुम शराफत से कहो
हर जगह चलती नहीं ये पहलवानी है बहुत

दूध पीपल को चढ़ाते लोग हर शनिवार को
काट हर ईज़ा की कथा पुरानी है बहुत

रोक देंगे गर हमें तकलीफ तुम देने लगे
प्यार की भाषा न समझे नार फानी है बहुत

~ सूफी बेनाम


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