Tuesday, April 12, 2016

वस्ल का कोई मकां नहीं होता

रात का आसरा नहीं होता
वस्ल का कोई मकां नहीं होता

कुछ कदम हम सफर चले लेकिन
अब कभी वासता नहीं होता

हर जगह घर बना सका इनसां
मैकदा बारहा नहीं होता

तह तलक भीगना मुनासिब था
दर्द दो बूँद का नहीं होता

हर सुबह-शाम की पहेली का
किस्मतों को पता नहीं होता

राह बेनाम इबतिला लेकिन
दोस्त हर बाखुदा नहीं होता

~ सूफ़ी बेनाम



इबतिला - suffering/trial.


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