Friday, April 1, 2016

किसी डाल पर चाहतें लड़खड़ाये

किसी डाल पर चाहतें लड़खड़ाये  
कहीं बाद हसरत नशेमन उड़ाये

दुपट्टा ज़रा तू संभलके उड़ाना
कहीं आरज़ू उलझ मेरी न जाये

कलीमा न पलकें न काजर के मिसरे
नफ़स जाम से ज़ुल्फ़ के मन्द साये

कफ़स का सलीके हमें क्या पता था
कि बाहों रही क्यों गुलिस्तां बसाये

न चिमटी न कंगन न बिंदिया न कुमकुम
अराईश  इनकी तुमे भी सताये

न बेनाम रखना कभी याद मेरी
ग़ज़ल तिशनगी-दासतां गुनगुनाये

~ सूफ़ी बेनाम



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