Sunday, April 3, 2016

नशा बन चुका है सफर का जुनूं

हक़ीक़त दवा है निगलने तो दो
दरीचे ज़रा आस दिखने तो दो

कभी साथ चलना रिज़ा थी मेरी
अदब है ज़रा सा बदलने तो दो

नशा बन चुका है सफर का जुनूं
प्याला रची  मय छलकने तो दो

बिखर रौशनी में सबा का असर
गिले इस कदर, दम निकलने तो दो

वजह जाफराना ग़ज़ल की तेरी
हमें भी ज़रा सा समझने तो दो

~ सूफ़ी बेनाम


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