Wednesday, April 6, 2016

ख्वाब को महमां बताना छोड़ दे

बेवजह मुझको डराना छोड़ दे
ख्वाब को महमां बताना छोड़ दे

इश्क़ में करते नहीं सौदे समझ
क़र्ज़ ले कर तू चुकाना छोड़ दे

नज़्म अपने घाव दिखाए किसे
नर्म सा मरहम लगाना छोड़ दे

तू कभी समझा नहीं दोस्ती अगर
अब ज़रा रिश्ते बनाना छोड़ दे

दिल लगाने की दवा कुछ और है
अनकहे किस्से बताना छोड़ दे

आप बीती को ज़रा तू याद कर
बेवजह तू मुस्कराना छोड़ दे

एक समय ग़ज़लों लिए तू बांध ले
हर समय तू गुनगुनाना छोड़ दे

ख्वाब से कहना कि रातों में मिले
तू ज़रा फुर्सत निभाना छोड़ दे

आ सिखा दूँ नज़्म के सौदागरों
अब मेरा मिसरा चुराना छोड़ दे

~ सूफी बेनाम



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