Thursday, April 28, 2016

तभी पाया गज़ल को था

1222*4

हकीकत को कहीं खोया तभी पाया गज़ल को था
सभी को लग रहा था कलम से बहता लहू ही था
रहे दयर - ओ - हरम में डूबते चाहत वफा सभी
कभी ढूंढा नहीं फिर अस्ल खोया कहीं पे था

~ सूफ़ी बेनाम

दयर-ओ-हरम --» temple, mosque


No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.