Thursday, April 28, 2016

चाह को उमर भर जलाना है

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मतला :
चाह को उमर भर जलाना है
पलक पे आज फिर बिठाना है

रह गयी कुछ खलिश इरादों में
हम को हर हाल तुमको पाना है

कुछ थी उम्मीद कुछ सफर लम्बा
चाह के हौसले बढाना है

एक ग़ज़ल हाल था सफ़ीने का
हर लहर मस्त झूम जाना है

रात फिर बेनिशा मुकामों की
आस पर सांस की  तड़पना है

आयगा दौर अबके  बारिश का
ओंठ दो बूंद से भिगाना है

फिर अगर आजमा सको किसमत
एक हसीं काफिला बनाना है।

~ सूफ़ी बेनाम।




मतला :
चोट कर के उदास बैठा है
जान लेना कि ये ज़माना है

चाहतों में कभी अगर उलझी
आग को भी धुंआ बनाना है

गर कभी राह पे मिलेंगे तो
साथ नज़दीकियों को पाना है

उम्र का है जुनूं कहीं दिल में
चोट खाया हुआ बताना है

है सफर रास्ता मुक़ददर का
शायरी साथ करते जाना है

गर कसर हथकड़ी लगा जाये
एक खता हम को भी भूल जाना है

~ सूफ़ी बेनाम



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