Sunday, December 27, 2015

ग़ज़लों में जज़्ब छुपते नहीं हैं हर किसी से


शब्दों के पायाब में डूबते नहीं हैं हर किसी से
ग़ज़लों में जज़्ब छुपते नहीं हैं हर किसी से

मिसरों से बेहतर रहता इंसा का नेक इरादा
मुस्कान उभरती नहीं दिल से अब हर किसी से

ज़ेर-ओ-बाम को है उसने फिर रूज से जलाया
रुखसार हो गये हैं कीमिया उसकी ही हंसी से

बूंदों की छनक से हैं तलब आसमा बरस-ते
शफ़क़-ए-चमक से है ज़र-ए-ज़ेवर अब किसी से

तेरी रंग-ओ-बू में बसर है मेरी तलब के किस्से
हर ख्वाब था बसाया तेरी ज़ुल्फ़ की नादिरी से

बेनाम इस सिलाह की बेचैनीयाँ  तो समझो
ग़ज़ल में नहीं मिलते मक़सद हर किसी से
~ सूफी बेनाम



पायाब – ankle deep water, ज़ेर--बाम – low and deep sound, रूज – rouge, कीमिया – alchemy, रुखसार – cheek , शफ़क़--चमक – evening twilight, ज़र--ज़ेवर – golden jewellery, नादिर – priceless. 

Friday, December 25, 2015

जब गुज़िश्ता से मिलने चले आयेंगे

कुछ जब गुज़िश्ता से  मिलने चले आयेंगे
तब शायद आइन्दा को गुज़रा हुआ पायेंगे

ग़ैर-मुतव्वल हो जाएँगी पहचानें पुरानी
लम्हे ज़िंदादिली के बेखुदी तलक सुलगायेंगे

मेरा खोया है अक्स कोई खोई तस्वीर क्या
किसी जनाज़े तेरे कान में फुसफुसा जायेंगे

एक ग़ज़ल जिसपे होने लगे थे बदनाम हम
बे रदीफ़ ही सही काफ़िया की आन निभायेंगे

समझो कि आतिश-ए-परछाई है हर वाक़ियाँ
फलक-ए-शरार को तहज़ीब-ए-रक्स सिखायेंगे

मुड़ के देखोगे कभी इस बार मिलने के बाद
उम्मीद को रिश्तों की  बेनाम शक्ल दिखायेंगे

~ सूफी बेनाम

ग़ैर-मुतव्वल - strange delay of payments or debts, गुज़िश्ता - past, आतिश-ए-परछाई - shadows caused by fire, फलक-ए-शरार - heaven's flash or gleams, तहज़ीब-ए-रक्स - manners of dance.

Thursday, December 24, 2015

खस औ किमाम से इकरार लिख देना

बेइन्तहां इंसा पे फिर इंसा का इकरार लिख देना
कैसी रिवायत कि रिश्तों से अधिकार लिख देना

अकेले  दिनों में मक़सद को कई नाम मिलते हैं
हाल-ए-ज़र्फ़ हो मंज़ूर तो दिल गद्दार लिख देना

तेरे नाम की रौनक से यहाँ बदनाम हैं कुछ लोग
गर हो ऐतराज़ हवाओं पे तुम इनकार लिख देना

ख्यालों के दायरों से न तुम समझना शायरी मेरी
ये बे-आब हसरत इनको दर्द-ए-पतवार लिख देना

लिखोगे दास्तां मेरी मुसलसल अंदाज़ की खातिर
दोपहर फिर खस औ किमाम से इकरार लिख देना

बकाया रह गया होगा गर दोस्ती में कोई मुक़ाम
इस बेनाम हसरत को लब-ए-गुलज़ार लिख देना

~ सूफी बेनाम

हाल-ए-ज़र्फ़ -  feeling capable, बे-आब - without water  used as in without a flow, दर्द-ए-पतवार - oar of pain, मुसलसल - successive, linked, लब-ए-गुलज़ार - bloom of lips as in a smile.


Can be sung as  मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता

किसी के गम का कारण हम न बने

गीत नहीं मैं जिसे लब गुनगुनाते हैं
सरगम-ए-साज़ हूँ जिसे दिल बसाते हैं

आतिश छेड़ते हैं जब सूने लफ्ज़ कहीं
अक्सर ही सिर्फ मेरा दिल जलाते हैं

ज़िन्दगी पल दो पल की दूरी तो नहीं
मुड़ के देखना मुमकिन नहीं पाते हैं

मुनासिब नहीं दिलों में आँच उठती रहे
कुछ हसरतों के तूफ़ान डुबोते जाते हैं

किसी के गम का कारण हम न बने
क्यों  सोचने को  सिर्फ़ अहबाब रह जाते हैं

~ सूफी बेनाम

साज़ - musical instrument, आतिश - fire, अहबाब - lovers / friends.


Can be sung as आईने के सौ टुकड़े करके हमने देखे है...

Tuesday, December 22, 2015

प्याले मिट्टी थे ऐ कुम्हार-ए खुदा

ना मोहब्बात में रहते तुम्हारे ख़ुदा
ना ही इंसा को मिलते हमारे खुदा

रश्क़ इंसा को इंसा से इस-कदर रही
कि सूझा नहीं कैसे गुज़ारे खुदा

रईसों की नख़वत में उतनी ही थी
जितनी गरीबी असीरी बसारे खुदा

तेरे दिल के दरीचे पे  टूटे सनम
प्याले मिट्टी थे ऐ कुम्हार-ए खुदा

मेरे कदमों में नश्तर कई मंज़िलें
ज़िक्र तेरा है राहों पे वाह रे खुदा

क़ातिल तेरी तक़सीर में क्या क्या रहा
सच है देखो खुदी को मिटाते खुदा
~ सूफी बेनाम


रश्क़ - envy/ hatred, नख़वत - haughtiness/ pride, असीरी - imprisonment/ captivity, नश्तर - lancet/ trocar, तक़सीर  - sin/ crime.



Can be sung as हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम

मैं इस डगर की भूल हूँ चाहत-तों का सिरा नहीं

मैं इस डगर की भूल हूँ चाहत-तों का सिरा नहीं
किसी से न कहना सखी कि क्यों तेरा हुआ नहीं

मेरी उमंग औ लालसा गर रिश्त-तों की भूल थी
मैं इंसानों की भीड़ में क्यों किसी का आसरा नहीं

हर इक निगाह पे टिकी रही आस जो ख्वाब की
कुछ हकीकत-तों की साज़िशें हैं ये कोई दुआ नहीं

हालाँकि जिगर की रेत पर कई नाम धुल गये
कान्हां से पूछूंगा सखी क्यों राज़ तेरा दबा नहीं

तू याद-दाश्त भूल सा या ज़मीर का मलाल था
क्यों मुझसे रूठ कर मेरा दिल कभी मिला नहीं

तेरी शिकायतें आदतें हैं मेरे बदन  की चाहतें
तस्बीह की कड़ी से हम वकियों का शिफ़ा नहीं

जिक्र था हर नाम पे  बेनामी का सिरा सजा यहाँ
इंसा से अलग मुझे क्यों कभी दिखा इंसा नहीं

~ सूफी बेनाम

डगर- path/ village road, आसरा - hope, कान्हां - youthful playful amorous Krishna, ज़मीर - conscience, तस्बीह - simile, शिफ़ा - healing/cure.



Can be sung as अभी न जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं

Sunday, December 20, 2015

रेशमी-गुंचा साँस मुबारक है ग़ज़ल

वैरागी दीवानगी निभाती है ग़ज़ल
अश्क के  सपने सुलगाती है ग़ज़ल

लिखा था हिज्र के वीरानों में जिसे
वस्ल के रास्ते दिखलाती है ग़ज़ल

फ़रियाद के अर्गल खढ़काती हुई
तेरी शिकायत सुनने आती है ग़ज़ल

तराशती है जब जब उसे लिखता हूँ
नये नये मुकाम ले आती है ग़ज़ल

कभी कभी शम्स तलक परछाई है
वरना  सायों की रातरानी है ग़ज़ल

मिलती है मुझसे बे-अदब सादी सी
पर अक्सर आगोश महकती है ग़ज़ल

सुबह का खुमार नशा हर रात का
सूफीया धिक्र सुलग गुलाबी है ग़ज़ल

किसी का ख़म, हिना सिन्दूर सी
चूड़ी कोई कंगन खनकती है ग़ज़ल

चन्दन भी चांदिनी बेहिस सवालों सी
मेरे रोम-रोम को महकाती है ग़ज़ल

बेवजह दिल को सुलगता  कौन है
कागज़ पे बिलखती तड़पती है ग़ज़ल

कुछ ढकती है साज़-ए-दिल अक्सर
सूती शिफॉन कभी रेशमी है ग़ज़ल

नहीं ढूंढ़ती है रिश्ते इंसानों से अब
आजकल किताबी हो गयी है ग़ज़ल

ज़रा करीब आओ आजमाएं हम भी
क्या फुसफुसाती क्या सुनाती है ग़ज़ल

ज़ुल्फ़ की तहरीर में बाली झूमती  हुई
काक के कोहराम सी खुमारी है ग़ज़ल

रात अकेली है नींद नहीं आती इसको
सिरहाने अक्सर मश्क़ जलती है ग़ज़ल

ख्याल ही नहीं यादें औ अल्फ़ाज़ भी हैं
सबको नयी पहचान दिलाती है ग़ज़ल

बेनाम बगैर बेअंजाम बेआवाज़ अधूरी है
रदीफ़ औ काफ़िया पे सुलझती है ग़ज़ल


गुंचा - bud, वैरागी - a spiritual realization that leads to indifference, हिज्र - separation from beloved, वस्ल - union, अर्गल - door knocker, शम्स - sun/Truth as used in this work, रातरानी - cestrum nocturnum, आगोश - embrace, खुमार - intoxication, ख़म - lock of hair, साज़-ए-दिल - musical instrument of heart, तहरीर - writing, बाली - ear ring, मश्क़ - letter writing/ practice




~ सूफी बेनाम 

Thursday, December 17, 2015

समझदार को इशारा काफी रहा

हम-वज़ादार संभलते रह गये
समझदार को इशारा काफी रहा
ऐतबार-ए-शम्स जलते गये
साहिर तेरा पिटारा काफी रहा
सुकून बा-परवाज़ गर्द गये
फ़लक का नज़ारा काफी रहा
फ़ितर रंग-ए-ख़्वाब नाहक़ गये
ऐतबार-ए-मुक़द्दर काफी रहा
मुनाजत के पैमाने खाली गये
रक़्क़ास का शरारा काफी रहा
इम्तेहान-ए-तार्रुफ़ जान अगर
ला-इल्मियत का सहारा काफी रहा।
~ सूफी बेनाम

मुनाजत - prayer, hymn. रक़्क़ास - dancer . वज़ादार - dependable. साहिर - magician, तार्रुफ़ - acquaintance, ला-इल्मियत - illiteracy .

smart people can read signs for their benefit

mutually dependable ones tried balancing
smart ones picked the signs to their benefit
while I burned myself in the sun of trust
o! magician your box full of wonders was enough
search for peace in my flight was a waste
but I had a good view of the horizon
was useless to run behind my instinct for colour of life
i should have just rested on my fate
measures of prayers remained un-fulfilling
more got fulfilled through the colourful dresses of dancers
if the purpose of life is to get me acquainted to tests
i better remain safe with my illiteracy.



Wednesday, December 16, 2015

दिन के फलसफे


तक़दीर के फैसले  न मंज़ूर करता
गर हमदर्द कोई फ़रिश्ताई में होता

मैं नहीं जीता दिनो के फलसफों में
गर सबक दूरियों का स्याही में होता

भरता न ख़लाओं को वीरानगायी से
गर वस्ल लिखा आजमाई में होता

रास्तों को मंज़िल न समझता हमदम
गर दबा नक्शा मेरी किताबाई में होता

साहिल के रास्ते ही डूबता बेनाम गर
गर बेसब्र सहलाब तेरे अगोशाई में होता

फ़रिश्ताई - in angelic capacity/ control, फलसफा  - philosophy, ख़ला - space/ infinite.

~ सूफी बेनाम



वस्ल - Union, ख़लाओं - endless space 

चाहतों को चाहतों से तुम बदलकर देखना


चाहतों को चाहतों से तुम बदलकर देखना
तुम ज़रा सीरत अपनी खुद बदलकर देखना

यूं अक्सर ही मिलेंगे तड़पते अहबाब कभी
तुम ज़रा खुदसे संभलकर उनके नश्तर देखना

चाहतों के पर नहीं पर सबा का रुख तो देख
खुद सवारना और आँचल सा बहककर देखना

फितरती इंसान मैं ज़िन्दगी कैनवास सी है
तुम बिखरना और अपने रंग उड़ेलकर देखना

हर नयी मुलाकात जब रिशते सी बनने लगे
तुम ज़रा नज़दीकियों को दूरकर कर देखना

हैं पैगाम देने आते बदली फ़िज़ा और तितलियाँ
तुम ज़रा तन्हाइयों से अपनी निकालकर देखना

कुछ मेरे से रिश्ता फिर बेनाम सौदा जीस्तगी
तुम ज़रा कुछ दूर और आगे निकालकर देखना

~ सूफी बेनाम

सीरत - quality/nature/disposition/character, अहबाब - lover/ friends, जीस्त  - life existence.






Monday, December 14, 2015

तेरे लब से चाहतों का खुलासा नहीं मिला


इन हसरतों को कोई  दिलासा नहीं मिला
तेरे लब से चाहतों  का खुलासा नहीं मिला

मेरा चेहरा मुझको आइना दिखने लगा है क्यों
तक़सीर को हकीक़त-ए-तमाशा नहीं मिला

गुम-सुम से पूछते हैं बाम-ओ-दर फिर-फिर
तू कौन है जिसको मेरा ठिकाना  नहीं मिला

वो मिल के बिछड़ने का जज़्ब आम बात है
मिल-मिल के बिछड़ने का नमूना नहीं मिला

नसमझियों की सर्द को सूफियत का भरम
बेनामी के रिश्तों को कुहासा नहीं मिला
~ सूफी बेनाम


तक़सीर - error/ crime/sin , बाम-ओ-दर- roof and terrace, कुहासा - fog



कुहासा - fog ; तक़सीर - sin.

Sunday, December 13, 2015

रात तेरी शुआओं पे जो बुझी नहीं



क़ाफ़िया अत

रदीफ़ हो गई है


ग़ज़ल मेरी अदालत हो गयी है

हसरत तेरी इरादत हो गयी है


शुआओं से बुझी नहीं जो रातों में

चाहतें कोरी खल्वत हो गयी है


खुलती है नींद हररोज़ रातों में

सांसें तेरी मसाफ़त हो गयी है


सिरहाने मेरे तेरा क़ल्ब है यूं तो

दर-हकीक़त अज़ीयत हो गयी है


खुदाई सवाल रदीफ़ काफ़िया में

चाहत मेरी मुरव्वत हो गयी है


बद हवासी में ख़्याल समेटे-बटोरे

नज़्म मेरी नदामत हो गयी है


था सूफिया मगर इतना नहीं था

ज़िल्ल तेरी क़यामत हो गयी है

~ सूफी बेनाम



इरादत - faith, शुआओं - light of eyes , खल्वत - to retire in solitude, नदामत - regret, क़ल्ब - centre, destination, अज़ीयत - suffering, दर-हकीक़त - in fact, ज़िल्ल - shadow, मसाफ़त - distant , मुरव्वत - modest. 

Wednesday, December 9, 2015

सर्द रातें

लिपट अपने सायों से चादर सोते हैं कलन्दर सभी
सपनों की खासियत सर्द में बेताब  हैं बेघर सभी

कैफियत हवस इंसान की रही है सलाहियत तभी
जब तलक उम्मीद से आसरे हों कोई बेहतर तभी

स्वप्न या कोरी हकीक़त ये पहचान पाते हैं तभी
उठ खुद जब महसूस करते हैं सांसें औ चादर सभी

ये सियासत दिन की थी या रातों की मासूमियत
अपनी पहचान को हैं साहिल कभी समुन्दर सभी

सूफियत में महफूज़ हैं दीन उम्मीद उजाले सभी
बेनाम तम की ताबीर में रह जाते मुक़द्दर सभी

~ सूफी बेनाम



कैफियत - engrossment, सलाहियत - ability, कलन्दर - sufi . दीन - faith, ताबीर - interpretation.

Tuesday, December 1, 2015

कुछ ख़ास मंज़िल-ए-शान हो गए

कुछ ख़ास मंज़िल-ए-शान हो गए
ख़ाक-ए-गुज़र आये आहान हो गए

कुछ सजे शाख के गुलाब की तरह
बाकी सब्ज़ पत्ता और अरमान हो गए

कुछ के आब बहे बंद आँख से मगर
कुछ ज़ार काजल में बदगुमान हो गए

इश्क़ में संभलते नहीं मासूम के कदम
शौक-ए-ज़ीन लाये कुछ खादान हो गए

दौर-ए-ख़ास लाये मंसूर के कदम
कातिल भी शिकार भी इंसान हो गए

हारे खुद की उम्मीद-औ-आरज़ू से
हाल-ए-शिकस्त कुछ  बेनाम हो गए
~ सूफी बेनाम




आहान - iron ; मंसूर - Sufi / God , ज़ार -gold, बदगुमान- distrustful, ज़ीन - saddle.