Thursday, April 25, 2013

मेरे मन का सूनापन



कल मैं बहुत खेली  थी .
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे
थी बस एक बहन, जो मुझ सि बंधी थी
और मुझ से जुड़ी  थी
दादी के साए से पली
बाबा की कहानियों में बड़े हुए थे
हमारे बचपन के दिन .

पर शायद माँ होतीं तो
 रात के पहले पाँव धुलवाती   .
या पापा होते तो सोते ही मेरे पैर
पोछे जाते , और मैं सोने का नाटक कर करवट बदलती
कल मैं बहुत खेली  थी .
मेरी छुट्टी थी
माँ भी नहीं थी
पापा भी कहीं थे.


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