जागेंगे फिर से किल्लों में
जवां होंगे फिर फूलों में
महक लेंगे तुम्हें फिर से
ज़रा जीने की हसरत में
कभी हम कैस लैला भी
करेंगे सिर पे पत्थर भी
बहेंगे माथ रुधिर से
इबादत भी हसरत भी
भरे हैं आज हम समझो
छलकते आज हम समझो
एक सूखी सदी गुज़रे
ये साल जानो या न समझो
~ सूफ़ी बेनाम
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