अंदाज़ हसीनो का एक राज़ शराफत का
क्यों ज़ख़्म सजाये हैं इमरोज़ इबादत का
हर शाम सिरे लेकर एक ग़ज़ल से मिलती थी
बा खूब उभर आया एक राज़ क़यामत का
कमज़ोर स राब्ता हैं दो हर्फ़ जुदाई के
पर शेर कसर रखते नादान कि हसरत का
मिल कर जिस आशिक़ से रहते हम पागल हैं
रखता है परवाना अंदाज़ अमानत का
बेगार सफर में भी हर मोड़ गली वो ही
हर राह खबर रखती बेनाम महोबत का
~ सुफिबेनम
क्यों ज़ख़्म सजाये हैं इमरोज़ इबादत का
हर शाम सिरे लेकर एक ग़ज़ल से मिलती थी
बा खूब उभर आया एक राज़ क़यामत का
कमज़ोर स राब्ता हैं दो हर्फ़ जुदाई के
पर शेर कसर रखते नादान कि हसरत का
मिल कर जिस आशिक़ से रहते हम पागल हैं
रखता है परवाना अंदाज़ अमानत का
बेगार सफर में भी हर मोड़ गली वो ही
हर राह खबर रखती बेनाम महोबत का
~ सुफिबेनम
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