चाहतों ने कभी फिर सदाई न दी
फिर उन हसरतों की दुहाई न दी
मैं हसीं ख्वाब कोई दिखा न सका
ना मुलाक़ात तुमने सफाई न दी
मंज़िलों की हक़ीक़त लम्बा सफर
लूट कर ले गयी जो, दिखाई न दी
रोक लो कि कभी हम मिले ना मिले
भीड़ खोई कभी फिर दिखाई न दी
जिस्म से रंग धुल कर गये फिर कहाँ
क्यों हथेली पे रंगत दिखाई न दी
ज़िक्र के सिलसिले और ख्वाब ओ शहर
खिलखिलाती हंसी क्यों सुनाई न दी
हम किसी के गुनहगार रहने लगे
वक़्त ने क्यों कभी फिर सफाई न दी
~ सूफी बेनाम
फिर उन हसरतों की दुहाई न दी
मैं हसीं ख्वाब कोई दिखा न सका
ना मुलाक़ात तुमने सफाई न दी
मंज़िलों की हक़ीक़त लम्बा सफर
लूट कर ले गयी जो, दिखाई न दी
रोक लो कि कभी हम मिले ना मिले
भीड़ खोई कभी फिर दिखाई न दी
जिस्म से रंग धुल कर गये फिर कहाँ
क्यों हथेली पे रंगत दिखाई न दी
ज़िक्र के सिलसिले और ख्वाब ओ शहर
खिलखिलाती हंसी क्यों सुनाई न दी
हम किसी के गुनहगार रहने लगे
वक़्त ने क्यों कभी फिर सफाई न दी
~ सूफी बेनाम
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