Wednesday, April 6, 2016

चाहतों ने कभी फिर सदाई न दी

चाहतों ने कभी फिर सदाई न दी
फिर उन हसरतों की दुहाई न दी

मैं हसीं ख्वाब कोई दिखा न सका
ना मुलाक़ात तुमने सफाई न दी

मंज़िलों की हक़ीक़त लम्बा सफर
लूट कर ले गयी जो, दिखाई न दी

रोक लो कि कभी हम मिले ना मिले
भीड़ खोई कभी फिर दिखाई न दी

जिस्म से रंग धुल कर गये फिर कहाँ
क्यों हथेली पे रंगत दिखाई न दी

ज़िक्र के सिलसिले और ख्वाब ओ शहर
खिलखिलाती हंसी क्यों सुनाई न दी

हम किसी के गुनहगार रहने लगे
वक़्त ने क्यों कभी फिर सफाई न दी

~ सूफी बेनाम




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