रात अपने ख्यालों के
जंगल में जाना
कभी तो
रास्ते किनारे
झील पे झुके पेड़ से
एक शरारत तोड़ लाना
फ़र्द में अधूरी
मिसरों के विलय में उलझी
ग़ज़ल की डालियों में चंद
हर्फों के
कांटे बिखरे पड़े हैं
पाँव की कोरें में
चुभ गए अगर राज़ दोस्ती के
तो यादों की छाल से रिसते द्रव्य की
दो बूँद छुआना
और आगे बढ़ते जाना
याद है
वो पिछले साल
जब बारिश ज़्यादा हुई थी
और दो शामें चट्टानों पर
नंगे पैर दौड़ पड़ी थीं
वो सब तुमने एक रूमाल पे
काढ ली थीं
आज उसी
रूमाल का एक कोना
वक्त पर काम आया है मेरे
प्यार भी इंसान को कितना सिखाता है
दोस्ती का सफर रूमान हो
तो दूर तक जाता है
~ सूफी बेनाम
फ़र्द - sheet of paper/spread sheet.
जंगल में जाना
कभी तो
रास्ते किनारे
झील पे झुके पेड़ से
एक शरारत तोड़ लाना
फ़र्द में अधूरी
मिसरों के विलय में उलझी
ग़ज़ल की डालियों में चंद
हर्फों के
कांटे बिखरे पड़े हैं
पाँव की कोरें में
चुभ गए अगर राज़ दोस्ती के
तो यादों की छाल से रिसते द्रव्य की
दो बूँद छुआना
और आगे बढ़ते जाना
याद है
वो पिछले साल
जब बारिश ज़्यादा हुई थी
और दो शामें चट्टानों पर
नंगे पैर दौड़ पड़ी थीं
वो सब तुमने एक रूमाल पे
काढ ली थीं
आज उसी
रूमाल का एक कोना
वक्त पर काम आया है मेरे
प्यार भी इंसान को कितना सिखाता है
दोस्ती का सफर रूमान हो
तो दूर तक जाता है
~ सूफी बेनाम
फ़र्द - sheet of paper/spread sheet.
( picture courtesy : Vivek Banerjee)
Amazing. Reminiscent of Gulzaar sahib.
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