Friday, May 13, 2016

यहाँ अधिकार के रिश्ते तो लाइसेंस मिलते हैं

1222-1222-1222-1222

गिरह :
सभी हैं शर्मसारा-ए-गुमां हो ग़र्क़ महफ़िल में
सुना है क्या कि पर्दों में इशारे खुद बिखरते हैं

मतला:
कभी टायर कभी मंज़िल सवारी भी बदलते हैं
सभी सुलझे हुए उस्ताद टपनी से ही बचते हैं

सड़क पर टायरों के घिसटने से पड़ गये ठप्पे
अदब भी तेज़ कारों के जुनूं के किस्से बुनते हैं

कभी रफ़्तार उलझाती रही मासूम चाहत को
कहीं पर ब्रेक के बेफ़िक़्र से बिगड़े उछलते हैं

खबर रखते हैं सडकों पर सभी के आने जाने की
मसाफत में ज़मी औ आसमां भी नपते दिखते हैं

रुकोगे गर कहीं तुम बेवजह, संभलने को ज़रा भी
नियम बिगड़ा बड़ा है ये यहाँ चालान कटते हैं

बिना अभ्यास के इस दौर में कोई नहीं चलता
यहाँ अधिकार के रिश्ते तो लाइसेंस मिलते हैं

गुनाह -ए-कार ही होता इसे पेट्रोल ना भरते
सज़ा हैं दूरियां भी इसलिए नक़्शे भी मिलते हैं

बड़ी गति से निकलते हैं डगर पे लौह के पैकर
सफर बेनाम चलते हादसे होते ही रहते हैं।

~ सूफ़ी बेनाम

मसाफत - distance , space , days  journey; टपनी - stepney
( tired of writing on Love , Pain and Passion I have used the imagery of car for some play of feelings and to establish the strange correlation with life.)


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