आओ इन बिछड़े सिरों को जोड़ के देखें
ज़िन्दा रात को और सोये हुए दिन को देखें
विलादत दरमियान थे जो किससे अपने ही
उस जश्न को माँ की पहचान दे कर के देखें
कभी चेहरों में कभी फ़िज़ा में ढूँढ़ते हैं तुमे
आओ तुमारी उम्र में अब बचपना भी देखें
कभी कभी थकने लगता हूँ तुम्हारी बातों से
रुको ज़रा तुमारी बहु में बच्चों की माँ देखें।
सूफ़ी बेनाम
( विलादत - birth)
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