बह्र: 2122 1122 22 (112)
जब तलक दिल पे निशां आ जाए
महफिलों को न सजाया जाए
गम ज़दा हम न रहे एक पल भी
पल को फिर ख़ास बनाया जाए
छेड़ना और नहीं इस दिल को
प्यार का दौर कहीं आ जाए
रात कुछ और गुज़र जाए तो
आग से आग बुझाया जाए
तू रहा खास सभी बातों में
क्यों न हमराज़ बनाया जाए
देख नाकाम रही किसमत भी
क्यों न पत्थर को उछाला जाए
जुल्फ-ए-तहरीर लिखी होती है
ध्यान से पढ़ के बताया जाए
ख्वाब में जिन्दे कई मिलते है
आह इनको न लगाया जाए
~ सूफ़ी बेनाम
जब तलक दिल पे निशां आ जाए
महफिलों को न सजाया जाए
गम ज़दा हम न रहे एक पल भी
पल को फिर ख़ास बनाया जाए
छेड़ना और नहीं इस दिल को
प्यार का दौर कहीं आ जाए
रात कुछ और गुज़र जाए तो
आग से आग बुझाया जाए
तू रहा खास सभी बातों में
क्यों न हमराज़ बनाया जाए
देख नाकाम रही किसमत भी
क्यों न पत्थर को उछाला जाए
जुल्फ-ए-तहरीर लिखी होती है
ध्यान से पढ़ के बताया जाए
ख्वाब में जिन्दे कई मिलते है
आह इनको न लगाया जाए
~ सूफ़ी बेनाम
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