डूबी शामों के साये अब शाखों पे चढ़ बैठे है
सूने हैं अब जंगल सारी बातों का विस्तार करो
आहिस्ता से आकर डाली को अपने पंजों से कसकर
पंखों को सुलझाकर थोड़ा सिमटो मुझसे प्यार करो
चंचु चंचु छेड़ो फिर से कलरव क्रुंदन कोलाहल में तुम
रातों की गहरी चुप्पी को रोको तो इकरार करो
आकाशों के आगोश रहकर क्या मंज़र भर लाये
धरती पे दाने बिखरे क्यों उड़े अब विस्तार करो
देखो कैसा ढलता सूरज बहका बहका दिखता है
अम्बर की मदहोशी को ओढ़ो डैने खुमार करो
~ सूफ़ी बेनाम
सूने हैं अब जंगल सारी बातों का विस्तार करो
आहिस्ता से आकर डाली को अपने पंजों से कसकर
पंखों को सुलझाकर थोड़ा सिमटो मुझसे प्यार करो
चंचु चंचु छेड़ो फिर से कलरव क्रुंदन कोलाहल में तुम
रातों की गहरी चुप्पी को रोको तो इकरार करो
आकाशों के आगोश रहकर क्या मंज़र भर लाये
धरती पे दाने बिखरे क्यों उड़े अब विस्तार करो
देखो कैसा ढलता सूरज बहका बहका दिखता है
अम्बर की मदहोशी को ओढ़ो डैने खुमार करो
~ सूफ़ी बेनाम
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