धरातल मिलेगा कहो अब किधर से
कहीं रोक लो अब हमें इस लहर से
चलो डूब जायें तुमी में कहीं पे
न उबरें न उड़ जाएं और न ही बरसे
चलो चश्म जादां उधेड़े तुमी को
कही तो मिलेंगे फिर हम सफर से
ये लाली ये नदिया ये सावन सुनो ना
असर देखना है उसी की नज़र से
उसे लग रहा था कि छेड़ा उसी को
सफर हाय कैसा रहा उस के डर से
~ सूफ़ी बेनाम
कहीं रोक लो अब हमें इस लहर से
चलो डूब जायें तुमी में कहीं पे
न उबरें न उड़ जाएं और न ही बरसे
चलो चश्म जादां उधेड़े तुमी को
कही तो मिलेंगे फिर हम सफर से
ये लाली ये नदिया ये सावन सुनो ना
असर देखना है उसी की नज़र से
उसे लग रहा था कि छेड़ा उसी को
सफर हाय कैसा रहा उस के डर से
~ सूफ़ी बेनाम
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