कुछ लोग, मुझमें मुझको ढूंढ़ने आते हैं। पर मैं अब वहां नहीं रहता। दोस्ती, कशिश, वस्ल की सरायें हैं इन्हीं में अदावत और रंजिश के बिस्तरों पर सुस्ताकर गुज़रता हूँ। बेनामी-उम्र के मीलों में ढूंढ़ता हूँ खुद को कभी मिल जाऊं तो बता देना।
~ सूफ़ी बेनाम
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