यूँ अपनी ज़ुल्फ का उलझा हुआ बादल मुझे कर दो
करो कुछ भी करो, इतना करो, पागल मुझे कर दो
चलो अब ख्वाइशों से ही भरेंगे मन का खाली पन
सिमट आओ ज़रा, आगोश का आगल मुझे कर दो
बहुत खामोश रहने लग गये हो, आज कल वैसे
सुना कर एक गज़ल अपनी, चलो, कायल मुझे कर दो
न मुमकिन है कभी श्रंगार का आइना बन पाऊँ
मगर जब भी सजो इतना करो काजल मुझे कर दो
~ आनन्द
( आनन्द खत्री, सूफ़ी बेनाम )
करो कुछ भी करो, इतना करो, पागल मुझे कर दो
चलो अब ख्वाइशों से ही भरेंगे मन का खाली पन
सिमट आओ ज़रा, आगोश का आगल मुझे कर दो
बहुत खामोश रहने लग गये हो, आज कल वैसे
सुना कर एक गज़ल अपनी, चलो, कायल मुझे कर दो
न मुमकिन है कभी श्रंगार का आइना बन पाऊँ
मगर जब भी सजो इतना करो काजल मुझे कर दो
~ आनन्द
( आनन्द खत्री, सूफ़ी बेनाम )
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.