1222-1222-1222-1222
ज़रा देखो, ये कैसे हो पड़ी औंधी, सड़क पर ही
नशा भरती हो कश में क्यों अगर झिलता नहीं तुमसे
गज़ब एहसास उलझन थी जो गुज़री रात भर लिपटे
अगर चाहत नहीं होती कभी टिकता नहीं तुमसे
हजारों ख्वाइशें हैं पैडलों की, ज़ीन की, पर अब
बंधा एक चेन से हूँ, इसलिये मिलता नहीं तुमसे
मेरे लोहे की कैंची, रान से चक्कर घुमा कर के
बिना मेरे वो मीलों का सफर पटता नहीं तुमसे
हमारी घंटियां तुम बेवजह इतना बजाती हो
तुमी को हैं दिये दो ब्रेक पर रुकता नहीं तुमसे
भले दिन भर चलाया कर, ज़रा धीरे घुमाया कर
वज़न सौ मन हो तेरा, मैं कभी थकता नहीं तुमसे
- सूफी बेनाम
नशा भरती हो कश में क्यों अगर झिलता नहीं तुमसे
गज़ब एहसास उलझन थी जो गुज़री रात भर लिपटे
अगर चाहत नहीं होती कभी टिकता नहीं तुमसे
हजारों ख्वाइशें हैं पैडलों की, ज़ीन की, पर अब
बंधा एक चेन से हूँ, इसलिये मिलता नहीं तुमसे
मेरे लोहे की कैंची, रान से चक्कर घुमा कर के
बिना मेरे वो मीलों का सफर पटता नहीं तुमसे
हमारी घंटियां तुम बेवजह इतना बजाती हो
तुमी को हैं दिये दो ब्रेक पर रुकता नहीं तुमसे
भले दिन भर चलाया कर, ज़रा धीरे घुमाया कर
वज़न सौ मन हो तेरा, मैं कभी थकता नहीं तुमसे
- सूफी बेनाम
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