नकाम-ए-इश्क़ को, हरेक क्यों, लगता पराया है
हमें जब भी मनाया, आप ने, हंस के मनाया है
जलेंगे ही, अगरचे आग से खेलोगे, ज़िन्दा हम
लपट की चाहतों में, जो भी आया, मर के आया है
बड़ी डिग्री है हासिल, इश्क़ में, जान-ए-तलब तुमको
हमें तो, प्यार की सरकार ने, अनपढ़ बताया है
फकत नाकामियों का इल्म तो, उम्र-ए-तकाज़ा था
इसी के दरमियाँ ही, खुद को भी बच्चा बनाया है
हमें अन्दाज़ कुछ तो था, कि हम उल्लू के पट्ठे हैं
मगर इस सच को, रह-रह आपने, अक्सर जताया है
~ सूफ़ी बेनाम
हमें जब भी मनाया, आप ने, हंस के मनाया है
जलेंगे ही, अगरचे आग से खेलोगे, ज़िन्दा हम
लपट की चाहतों में, जो भी आया, मर के आया है
बड़ी डिग्री है हासिल, इश्क़ में, जान-ए-तलब तुमको
हमें तो, प्यार की सरकार ने, अनपढ़ बताया है
फकत नाकामियों का इल्म तो, उम्र-ए-तकाज़ा था
इसी के दरमियाँ ही, खुद को भी बच्चा बनाया है
हमें अन्दाज़ कुछ तो था, कि हम उल्लू के पट्ठे हैं
मगर इस सच को, रह-रह आपने, अक्सर जताया है
~ सूफ़ी बेनाम
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