वज़्न - 1222 1222 1222 1222
काफ़िया - साया(आया), रदीफ़ - नहीं करते
कभी रंगों को अपने, अस्ल से साया नहीं करते
जो हों अपने लिये वो इश्क़ पे ज़ाया नहीं करते
वहम है वस्ल में खुद को खुदी से दूर कर देना
मुहब्बत करने में नज़दीकियां लाया नहीं करते
बहुत लम्बे सफ़र से लोग जो आते हैं कहते हैं
जिने आज़ाद रक्खो वो कहीं जाया नहीं करते
हमें अब लाज़मी लगते नहीं हैं दोस्त, क्या कर लें
अकेलेपन को अब हम हर कहीं ज़ाया नहीं करते
अधूरा होना किस्मत है, अधूरा जीना आफत, पर
अधूरापन जो जीते हैं वो बतलाया नहीं करते।
मेरे मालिक मेरे मौला, छुपा तुमसे है क्या अब तक
किसी भी झूठ को अब हम यूं दफनाया नहीं करते।
~ सूफ़ी बेनाम
काफ़िया - साया(आया), रदीफ़ - नहीं करते
कभी रंगों को अपने, अस्ल से साया नहीं करते
जो हों अपने लिये वो इश्क़ पे ज़ाया नहीं करते
वहम है वस्ल में खुद को खुदी से दूर कर देना
मुहब्बत करने में नज़दीकियां लाया नहीं करते
बहुत लम्बे सफ़र से लोग जो आते हैं कहते हैं
जिने आज़ाद रक्खो वो कहीं जाया नहीं करते
हमें अब लाज़मी लगते नहीं हैं दोस्त, क्या कर लें
अकेलेपन को अब हम हर कहीं ज़ाया नहीं करते
अधूरा होना किस्मत है, अधूरा जीना आफत, पर
अधूरापन जो जीते हैं वो बतलाया नहीं करते।
मेरे मालिक मेरे मौला, छुपा तुमसे है क्या अब तक
किसी भी झूठ को अब हम यूं दफनाया नहीं करते।
~ सूफ़ी बेनाम
अह्हा सूफी बेहतरीन गज़ल का नेयाब शेर है। मैं कभी नहीं भूलूंगी । बधाई
ReplyDeleteShukriya Krishna ..
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