1222-1222-1222-1222
कहीं से भी, हमें आवाज़ अब ,आती नहीं उसकी
हां शायद हम भी, उसको हर जगह, ढूँढा नहीं करते
है किसमत ये, कि रस्ते में हैं टकराते, उसी से हम
उमर है, रोज़ किसमत भी तो, अजमाया नहीं करते
ग़ज़ल के, राबते तो आज भी, इसरार करते हैं
मगर हम, अब नयी उम्मीद को, ज़ाया नहीं करते
~ सूफ़ी बेनाम
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