वस्ल की राजनीत है
मैं दूध लाया
आपने उसको मथा-उडेला
कभी ऊबाला, घी निकाला
बचे से फिर दही जमायी, मट्टठा बहाया
कभी उसको फाड़ा, पनीर सधाया
आपकी सृजनात्मकता अकल्पनीय है
पर इस दूध, मट्टठे का ज़िम्मेदार मैं नहीं हूँ
दूध का दही कर देना
आपकी तकनीक है
आपका शोध है
~ आनन्द
( आनन्द खत्री, सूफ़ी बेनाम )
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