वज़्न--2122 1122 1122 22
काफ़िया—आने, रदीफ़ ---आए
जाने बेनाम वो किस किस को बनाने आए
जब भी आए वो भटकने के बहाने आए
नाम औ शक्ल की पहचान को मिटा कर अकसर
हमसे हर किस्म के रिश्ते वो निभाने आए
हमने हर ज़ख्म को ग़ज़लों को दिखा रक्खा है
मुस्कराहट से अदावत वो बढ़ाने आए
वो नहीं और सही, और से बहतर कोई
इस दिलासे के बहाने वो पटाने आए
मेरे हर रोम में उस याद की रिम झिम बारिश
खुद थे भीगे वो, जबर हमको भिगाने आए
सूफ़ियत और ये मजनून सी हालत उनकी
कौन समझाए ये मुश्ताक़ ज़माने आए
~ सूफ़ी बेनाम
काफ़िया—आने, रदीफ़ ---आए
जाने बेनाम वो किस किस को बनाने आए
जब भी आए वो भटकने के बहाने आए
नाम औ शक्ल की पहचान को मिटा कर अकसर
हमसे हर किस्म के रिश्ते वो निभाने आए
हमने हर ज़ख्म को ग़ज़लों को दिखा रक्खा है
मुस्कराहट से अदावत वो बढ़ाने आए
वो नहीं और सही, और से बहतर कोई
इस दिलासे के बहाने वो पटाने आए
मेरे हर रोम में उस याद की रिम झिम बारिश
खुद थे भीगे वो, जबर हमको भिगाने आए
सूफ़ियत और ये मजनून सी हालत उनकी
कौन समझाए ये मुश्ताक़ ज़माने आए
~ सूफ़ी बेनाम
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