Sunday, May 8, 2016

शकील की दुकान

शकील की दुकान पे
गाड़ी गाड़ी बनवाने का अनुभव
बड़े गराज से सर्विस
कराने वाले क्या समझें

रोड साइड का फुटपाथ
और वहां  की गर्द और ईंट पे
डीजल द्रव्य-पान किये
अक्षम्य असभ्य निशान. ..!!
डीज़ल, ग्रीस, तेल मिटटी
के वास से ,गले फटे लंक-लाट
के कपड़े की किरमिच सी
पुरानी वर्दियां ओढ़े,
नाखून की सनखियों तक
गुदी कालिख संभाले..
सलीम , छोटू , मुन्ना, सागर,  मोंगली
के चेहरो पे मुस्कान रोकती काली रोग़न...
रदनक से फाड़ते ढक्कन ,
ओंठों पे पेचकस, मुँह में पेंच,
हाथ में औज़ार समेटे
गत्ते पे सरकते गाड़ी के भीतर.....
होड़ ,धर्म ,प्रतिस्पर्धा,
फैशन ,दिखावा ,मोहबत से दूर
उत्तरजीविता की एक दुनिया
जिसमें सिर्फ दिन होते हैं और दिहाडियां

कैसे समझ पायेंगे
ऊँचे गराज मे
अपनी मँहगी
आयतित कारो की सर्विसिंग करवाते
ऊँचे लोग...

~ सूफ़ी बेनाम




रदनक - canine teeth, उत्तरजीविता - survival, रोग़न  - grease/lubricant ,






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