Wednesday, May 18, 2016
ताज महल
नदी का किनारा
चार बुर्ज,
बीच में गुम्बज,
चढ़ी हुई चौकी
फैले बागान
संग-मरमर की वर्क़
महोब्बत का मकान।
कहो कैसे
खुले खलिहान
पर्वत, नदियां, झरने
सूखे पत्ते, धूप
सूरज चाँद
सेंध लगे मेरे दिल
के निशान
अरमान।
~ सूफ़ी बेनाम
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