Friday, May 13, 2016

जल तरंग

खालीपन पे चोट करें तो
दर्द की वीणा बजती है

खली बर्तन में भी सजते
संगीत की बेला बसती है

अपने अपने खालीपन को
कुछ तो लय में बेहने दो

कर्मों की बही साधने
कलाकार की लाठी बजती है

निःस्तभता में किसी की
अधूरेपन की कविता है

आधे प्यालों की कोरों पे
एक पीर की गूँज बसती है

सुनने वालों सुन के देखो
हम भी रहते खाली हैं

धरती के जल तरंग में देखो
नदी नाले दरिया प्याली हैं


~ सूफी बेनाम




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