Sunday, April 24, 2016

अंधेरों हटो अब दिनों का उजाला

अंधेरों हटो अब दिनों का उजाला
फकत दम भरेगा सफर साथ साया

रहा संग मेरे गुज़िश्ता अधूरा
अधूरी ग़ज़ल में किसी को थ पाया

मेरी जान तुम हो ज़रा मुस्करा दो
कि शाम-ओ-सहर था तुमे ही बुलाया

कफ़स तोड़ कर जो खुले आसमां में
उड़ो साथ मेरे बनो मेरा साया

इधर भी उधर भी ये क्या माजरा है
ज़मी ने फलक तक तुमे ही सजाया

कहो तुम बनोगे न मेरा सहारा
जलाओ न हमको तुमी ने हंसाया

अधर पे गुज़र कर ग़ज़ल चार मिसरे
हिदायत रहे हमसे अपना बसाया


~ सूफ़ी बेनाम



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