अंधेरों हटो अब दिनों का उजाला
फकत दम भरेगा सफर साथ साया
रहा संग मेरे गुज़िश्ता अधूरा
अधूरी ग़ज़ल में किसी को थ पाया
मेरी जान तुम हो ज़रा मुस्करा दो
कि शाम-ओ-सहर था तुमे ही बुलाया
कफ़स तोड़ कर जो खुले आसमां में
उड़ो साथ मेरे बनो मेरा साया
इधर भी उधर भी ये क्या माजरा है
ज़मी ने फलक तक तुमे ही सजाया
कहो तुम बनोगे न मेरा सहारा
जलाओ न हमको तुमी ने हंसाया
अधर पे गुज़र कर ग़ज़ल चार मिसरे
हिदायत रहे हमसे अपना बसाया
~ सूफ़ी बेनाम
फकत दम भरेगा सफर साथ साया
रहा संग मेरे गुज़िश्ता अधूरा
अधूरी ग़ज़ल में किसी को थ पाया
मेरी जान तुम हो ज़रा मुस्करा दो
कि शाम-ओ-सहर था तुमे ही बुलाया
कफ़स तोड़ कर जो खुले आसमां में
उड़ो साथ मेरे बनो मेरा साया
इधर भी उधर भी ये क्या माजरा है
ज़मी ने फलक तक तुमे ही सजाया
कहो तुम बनोगे न मेरा सहारा
जलाओ न हमको तुमी ने हंसाया
अधर पे गुज़र कर ग़ज़ल चार मिसरे
हिदायत रहे हमसे अपना बसाया
~ सूफ़ी बेनाम
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.