Saturday, April 16, 2016

दबा जो हौसला दिल का कभी तुझको बुलाएगा

दबा जो  हौसला दिल का कभी तुझको बुलाएगा
न मुड़ के देखना तुम भी खुदी फिर भूल जाएगा

बहुत नासाज़ कीमत है हकीकत हम सफ़र लेकिन
लिखा होगा न किसमत में अगर तो क्या निभाएगा

रगों में डूब कर जिनको असल के पार जाना है
कभी मर कर ज़रा देखो  कसर हर याद आएगा

अगर हो चूमना हमको सितारा तेरे माथे का
नज़र को मूंदना कुछ देर दिल फिर पास आएगा

डरी रातें अगर गुज़रो छुपे हों चाँद तारे भी
ज़रा सा आंख तुम खोलो अँधेरा डूब जाएगा

हकीकत शेर में बंध कर अगर दो सांस लेती है
बड़ी हसरत ग़ज़ल की है कभी तू गुनगुनाएगा

~ सूफ़ी बेनाम


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