हकीकत को कहीं खोया तभी पाया गज़ल को था
सभी को लग रहा था कलम से बहता लहू ही था
रहे दयर - ओ - हरम में डूबते चाहत वफा सभी
कभी ढूंढा नहीं फिर अस्ल खोया कहीं पे था
~ सूफ़ी बेनाम
दयर-ओ-हरम --» temple, mosque
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