Wednesday, April 6, 2016

तुमारे साथ चलना था सफर के पैर लम्बे कर

बहारों के नहीं होते नज़ारों के नहीं होते
बड़ी किस्मत लिखाते लोग रिश्तों के नहीं होते

बड़ा बेचैन सागर है शरारत सोज़ लहरों की
सनम तेरी महोब्बात हम किनारों के नहीं होते

सभी आँखों नहीं होते सवेरे रोज़ की आदत
कभी इस धूप के साये हज़ारों के नहीं होते

ग़ज़ब ये ख्याल के साये हमारी रात की ग़ज़लें
हकीक़त दर बदर फिरती फसानों के नहीं होते

जवां रातों की हसरत पर तुमारी शोख सिलवट है
हमारे दीन भी अकसर कभी सपनों के नहीं होते

कभी जो गाँव बसते थे कदम उनके निशानों पे
सड़क अब तेज़ चलते है बसेरों के नहीं होते

छुपे थे भीग चिलमन में दरीचों के सहारे से
अगर तुम हौसला रखते दिखावों के नहीं होते

तुमें क्यों साथ चलना है हकीक़त की ज़ुबाँ बन कर
धड़कते मौसमों के संग खिज़ाओं के नहीं होते

ज़रा सा सीख लेते तुम इसी दिलकश पहेली से
फलक के साथ जीते जो नतीजों के नहीं होते

कभी मेरी नफ़स समझो कभी इसकी वजह समझो
चलो ले कर महोब्बत को ज़ख़ीरों के नहीं होंगे

तुमारे साथ चलना था सफर के पैर लम्बे कर
इशारों की जुबां समझो जुनूनों के नहीं होंगे


~ सूफी बेनाम















No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.