हक़ीक़त दवा है निगलने तो दो
दरीचे ज़रा आस दिखने तो दो
कभी साथ चलना रिज़ा थी मेरी
अदब है ज़रा सा बदलने तो दो
नशा बन चुका है सफर का जुनूं
प्याला रची मय छलकने तो दो
बिखर रौशनी में सबा का असर
गिले इस कदर, दम निकलने तो दो
वजह जाफराना ग़ज़ल की तेरी
हमें भी ज़रा सा समझने तो दो
~ सूफ़ी बेनाम
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