निगाहें जो भरोसा रह गयीं दो ख्वाब शिद्दत के
इरादा हसरतां देखो ज़रा बद रंग हो फिर भी।
पलक उसकी झुकी देखी इबादत सा हसीं चेहरा
दबी उल्फत लरकती है सदा बे-रंग हो फिर भी।
अदा है ज़िन्दगी देखो हज़ारों शाम चाहत की
मसक के याद चुभती है किसी का संग हो फिर भी।
दिलों भीतर गुज़र करते सभी इंसा इसे समझो
लिफ़ाफ़ा है असल देखो हकीक़त संग हो फिर भी।
~ सूफ़ी बेनाम
इरादा हसरतां देखो ज़रा बद रंग हो फिर भी।
पलक उसकी झुकी देखी इबादत सा हसीं चेहरा
दबी उल्फत लरकती है सदा बे-रंग हो फिर भी।
अदा है ज़िन्दगी देखो हज़ारों शाम चाहत की
मसक के याद चुभती है किसी का संग हो फिर भी।
दिलों भीतर गुज़र करते सभी इंसा इसे समझो
लिफ़ाफ़ा है असल देखो हकीक़त संग हो फिर भी।
~ सूफ़ी बेनाम
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