बड़ा मसरूफ रखते है मस्क सांसें, रानाई भी
मुनासिब है तुम्हें हो मंज़ूर जीवन की तन्हाई भी
ज़रा मालूम तो कर लो इरादा ज़िन्दगी का
बे-नज़ीर कर चुकी है तुमको मेरी जुदाई भी
~ सूफ़ी बेनाम
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