डूबने को फिर सपना हो न हो
हसरतों का आँसु गहरा हो न हो
रह वफ़ा के गाँव में गर घर मिले
हसरतों को मन चुना क़स्र हो न हो
आज तू इस लम्स को कुर्बान दे
चाह की तक़दीर खंजर हो ना हो
राह को दो-चार जो मंज़र मिले
रास्तों का कोइ दिलबर हो न हो
फिर ठिकाने खोज करते काफिले
शाम को फिर रात का घर हो न हो
हर किसी के दौर आता आसमा
पर कभी अख्तर मुकद्दर हो न हो
हौसला रख हर कहीं मेरा निशां
हर इबादत श्याम का घर हो न हो
~ सूफी बेनाम
क़स्र - palace
हसरतों का आँसु गहरा हो न हो
रह वफ़ा के गाँव में गर घर मिले
हसरतों को मन चुना क़स्र हो न हो
आज तू इस लम्स को कुर्बान दे
चाह की तक़दीर खंजर हो ना हो
राह को दो-चार जो मंज़र मिले
रास्तों का कोइ दिलबर हो न हो
फिर ठिकाने खोज करते काफिले
शाम को फिर रात का घर हो न हो
हर किसी के दौर आता आसमा
पर कभी अख्तर मुकद्दर हो न हो
हौसला रख हर कहीं मेरा निशां
हर इबादत श्याम का घर हो न हो
~ सूफी बेनाम
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