Sunday, May 8, 2016

अमलतास


जलती धूप में जब सूने घर को लौटता हूँ
एक खिले हुए अमलतास को देखता हूँ
निस्तब्ध रहता लू में आग के अंगूरों सा
उसकी तासीर की शिद्दत से शिकस्ता हूँ

~ सूफ़ी बेनाम






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