Wednesday, May 18, 2016

उमर का अब असर नहीं होता

साथ तेरा कसर नहीं होता
इत्मिना कोइ भर नहीं होता

हम न  चाहें तुमें अगर बन कर
ख्वाइशों का कहर नहीं होता

आबिला पाँव की पहेली थे
दिल से मीलों सफर नहीं होता

हसरतों को ये शौक चहरों का
उमर का अब असर नहीं होता

राह बेउम्र सी मिली अबतक
दासतां का महर नहीं होता

एक नज़्म सी शक़्ल सवालों की
अब कहो की कहर नहीं होता

फिर कभी देर तक मिलेंगे हम
इश्क़ भी हर पहर नहीं होता

साफ़ कह दो कि बंद हैं आंखें
ठोकरें दर बदर नहीं होता

फिर किसी चाँद का सहारा है
रात का अब असर नहीं होता

हम पे स्याही से दाग लगते हैं 
लब पे नेमत कसर नहीं होता


गिरह:
दिन को देखें औ रात फिर सपने
हमसे इतना सफ़र नहीं होता

~ सूफ़ी बेनाम


बह्र :2122 1212 22 (112)
आबिला - boils / blisters , महर - favour



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