Sunday, May 22, 2016

फलक तक गुमशुदा राहों में यूं ही

1222-1222-122
उलझ कर रह गया ख्यालों में यूं ही
गुंथा था जाने क्यों बालों में यूं ही

शहादत बन चुकी है उसकी चाहत
बड़ी तकलीफ है तारों में यूं ही

कभी तो गिनतियां दीवानो में हो
रहेंगे गुमशुदा यादों में यूं ही

नतीजा बन सकोगे मेरी किस्मत
बसे दिन रात की साँसों में यूं ही

वफ़ा है दिल जलाने का तरीका
सुनो मेरी रज़ा आहों में यूं ही

इनायत बन गयी है तेरी चाहत
सुलगती किस्मतें बाहों में यूं ही

नशा अब बन गया दिल का बवंडर
बहा हूँ शौक से प्यालों में यूं ही

रहा तेरी रिज़ा का ही भरोसा
लगा था इस तरह सालों में यूं ही

ज़रा हमको जगह दो आसमां में
फलक तक गुमशुदा राहों में यूं ही

बहुत सी रौनकें उस पार हैं पर
चलो तो घूम लें खारों में यूं ही

ज़माना देखता कब दिल के आँसू
जिगर तो बन्द था वादों में यूं ही

बहुत संगीन हैं यारी की शर्तें
रहेंगे मौन दीवारों में यूं ही

~ सूफ़ी बेनाम


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