Tuesday, May 10, 2016

पंखों को सुलझाकर थोड़ा सिमटो मुझसे प्यार करो

डूबी शामों के साये अब शाखों पे चढ़ बैठे है
सूने हैं अब जंगल सारी बातों का विस्तार करो

आहिस्ता से आकर डाली को अपने पंजों से कसकर
पंखों को सुलझाकर थोड़ा सिमटो  मुझसे प्यार करो

चंचु चंचु छेड़ो फिर से कलरव क्रुंदन कोलाहल में तुम
रातों की गहरी चुप्पी को रोको तो इकरार करो

आकाशों के आगोश रहकर क्या मंज़र भर लाये
धरती पे दाने बिखरे क्यों उड़े अब विस्तार करो

देखो कैसा ढलता सूरज बहका बहका दिखता है
अम्बर की मदहोशी को ओढ़ो डैने खुमार करो

~ सूफ़ी बेनाम


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