Thursday, May 5, 2016

धरातल मिलेगा कहो अब किधर से

धरातल मिलेगा कहो अब किधर से
कहीं रोक लो अब हमें इस लहर से

चलो डूब जायें तुमी में कहीं पे
न उबरें न उड़ जाएं और न ही बरसे

चलो चश्म जादां उधेड़े तुमी को
कही तो मिलेंगे फिर हम सफर से

ये लाली ये नदिया ये सावन सुनो ना
असर देखना है उसी की नज़र से

उसे लग रहा था कि छेड़ा उसी को
सफर हाय कैसा रहा उस के डर से

~ सूफ़ी बेनाम



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