Sunday, February 28, 2016

कलम

गूँज है रेफ में नुख्तों की खनक है
अक्सर ही हर्फों पे बलख जाती है
मचकती है मात्राओं में कागज़ पे
कलम ख्यालों पे फिसल जाती है
~ सूफ़ी बेनाम


No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.