Monday, February 15, 2016

शम्स को मेरी हिरासत कर गये



शायद ख्याल से जलकर गये

मिसरों से अंदाज़ सुलगकर गये


हाय जो फ़िरते थे आवारा राह में

किस तरह काँटों से फटकर गये


जो चपके रह गये थे जिल्द से

वो हवाओं में सर पटक कर गये


हर हर्फ़ जब था ज़रूरी मश्क़ का

एक किता में समझौता कर गये


वो ख्याला ग़ज़ल आज़ाद रही

शम्स को मेरी हिरासत कर गये


~ सूफी बेनाम





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