रोज़ नामों तलक ढका पाया
हमने हर एक में खुदा पाया
क़ैस नहीं ज़िन्दगी रिज़ा पाया
इश्क़ को हमने बुलबुला पाया
हममे नफरत जगा रही सोना
रोज़ कागज़ ग़ज़ल-जला पाया
कोई रुकता नहीं है किस्मत पर
मील चलकर नया सिला पाया
हमने उम्मीद को शिफ़ा पाया
साथ लम्हा' कभी लिखा पाया
~ सूफी बेनाम
क़ैस - majnoo , रिज़ा - pleasure
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