Sunday, February 21, 2016

फलक सा खुला कब कफ़स कैद रहता

मतला :
मता बन बरसने को जी चाहता है
फिदा बन तरसने को जी चाहता है

फलक सा खुला कब कफ़स कैद रहता
गिरह बन चहकने को जी चाहता है

तू उस दौर का था मैं इस दौर का हूँ
दहर को मसकने को जी चाहता है

ये दिन-दिन के सौदे रातों के सपने
वफ़ा को बदलने को जी चाहता है

अदम रासतों पर कदम रख दिये जब
दमक कर चहकने को जी चाहता है

तू सिमटा नहीं एक लम्हे में बसर कर
सुफ़िआ बहकने को जी चाहता है
~ सूफी बेनाम









मता - wealth, फिदा - sacrifice/devotion, कफ़स - body, दहर - time/age, अदम - destruction/ annihilation .

~ सूफी बेनाम

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