वो ज़मीं भी क्या है ज़मी सोचता हूँ
जो सरहद पे उलझ गयी सोचता हूँ
क्यों रिश्ता दर-रिश्ता बाटने चले हैं
माँ और मासी की परख सोचता हूँ
इंसा क्या है इंसा के लिये सोचता हूँ
ज़मीं क्या है इंसा के लिये सोचता हूँ
फंसे क्यों सरहदों औ रिश्तों के बीच हैं
बट के देश औ अपने बने सोचता हूँ।
~ सूफी बेनाम
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.