बहुत नाप कर रही कहानी है यारो
ग़ज़ल एक छुपी ज़िंदगानी है यारो
यहाँ रोज़ मुश्त-ए-ख़ाक इन्सां सफर में
सुना फिर एक निदा झपकी है यारों
किताबों के पन्नों से स्याही में बहकर
निदा की नज़्म कान घुलती है यारों
निदा था सफर भरमें मिसरों में बुन-बुन
क्यों वक़्त की गिरह उलझी है यारों
न कुछ मिल सका और कह भी न पाया
मुलाकात गुज़री फ़िज़ा सी है यारों
निदा था अधर पर ग़ज़ल झूमता सा
फिदा रह गयी अब प्यासी है यारो
~ सूफी बेनाम
निदा - call / sound , फिदा - devotion, मुश्त-ए-ख़ाक - handful of dust (human being)
ग़ज़ल एक छुपी ज़िंदगानी है यारो
यहाँ रोज़ मुश्त-ए-ख़ाक इन्सां सफर में
सुना फिर एक निदा झपकी है यारों
किताबों के पन्नों से स्याही में बहकर
निदा की नज़्म कान घुलती है यारों
निदा था सफर भरमें मिसरों में बुन-बुन
क्यों वक़्त की गिरह उलझी है यारों
न कुछ मिल सका और कह भी न पाया
मुलाकात गुज़री फ़िज़ा सी है यारों
निदा था अधर पर ग़ज़ल झूमता सा
फिदा रह गयी अब प्यासी है यारो
~ सूफी बेनाम
निदा - call / sound , फिदा - devotion, मुश्त-ए-ख़ाक - handful of dust (human being)
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.