मेरी चाहत मेरी आगोशगी को
कभी महसूस कर लो दिल्लगी को
कभी तुम भी हद्दों को पार करना
जहाँ तक ढक ले बादल चांदनी को
अगर उलझन में कोई आदमी हो
कभी मायूस न करना तुम किसी को
ज़रा तुम मुस्करा कर माफ़ करना
मेरे जस्बात की उस मुफलिसी को
अगर बेनाम खत लिखता हो कोई
ज़रा तुम नाम बनना उस ख़ुशी को
~ सूफी बेनाम
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