Friday, February 26, 2016

ज़रा तुम मुस्करा कर माफ़ करना

मेरी चाहत मेरी आगोशगी को
कभी महसूस कर लो दिल्लगी को

कभी तुम भी हद्दों को पार करना
जहाँ तक ढक ले बादल चांदनी को

अगर उलझन में कोई आदमी हो
कभी मायूस न करना तुम किसी को

ज़रा तुम मुस्करा कर माफ़ करना
मेरे जस्बात की उस मुफलिसी को

अगर बेनाम खत लिखता हो कोई
ज़रा तुम नाम बनना उस ख़ुशी को

~ सूफी बेनाम





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